Three Fish and the Power of ForesightTellmestorydaddy.com

तीन मछलियों की कहानी बहुत प्रेरणादायक कहानी है । नदी के किनारे, उसी जलधारा से जुड़ा हुआ एक विशाल ताल था। इस ताल का पानी गहरा था, जिसके कारण उसमें हरी काई और मछलियों के पसंदीदा, छोटे जलीय पौधे पनपते थे। मछलियों को ऐसे स्थान अत्यंत प्रिय होते थे। इसीलिए, नदी से बहुत सारी मछलियाँ इस ताल में आकर निवास करती थीं। अंडे देने के समय तो सभी मछलियाँ इसी ताल में एकत्रित होती थीं। लम्बी घास और घनी झाड़ियों से घिरे होने के कारण वह ताल आसानी से दिखाई नहीं देता था।

उसी ताल में तीन मछलियाँ साथ रहती थीं, लेकिन उनके स्वभाव में भिन्नता थी। अन्ना का मानना था कि यदि संकट के संकेत मिलें, तो तुरंत उससे बचाव के उपाय करने चाहिए। प्रत्यु का कहना था कि संकट के आने पर ही उससे बचने का प्रयास करना उचित है। वहीं, यद्दी की राय थी कि संकट को टालने या उससे बचने की बातें व्यर्थ हैं; जो भाग्य में लिखा है, वह अवश्य होकर रहेगा, कर्म करने से कुछ नहीं बदलता।

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एक संध्या, कुछ मछुआरे नदी में मछली पकड़कर अपने घरों की ओर लौट रहे थे। उनके जालों में बहुत कम मछलियाँ फँसी थीं, जिससे उनके चेहरे उदास थे। तभी उनकी दृष्टि झाड़ियों के ऊपर से गुजरते हुए मछली खाने वाले पक्षियों के एक झुंड पर पड़ी। प्रत्येक पक्षी की चोंच में एक मछली दबी हुई थी, जिसे देखकर वे आश्चर्यचकित हो गए।उनमें से एक ने अनुमान लगाया, “मित्रों! ऐसा प्रतीत होता है कि इन झाड़ियों के पीछे नदी से जुड़ा हुआ एक जलाशय है, जहाँ इतनी सारी मछलियाँ पल रही हैं।” मछुआरे इस विचार से उत्साहित होकर झाड़ियों के बीच से होते हुए ताल के किनारे पर पहुँच गए और लालची नज़रों से मछलियों को देखने लगे।एक मछुआरे ने कहा, “वाह! यह जलाशय तो मछलियों से भरा पड़ा है। आज तक हमें इसका ज्ञान ही नहीं था।” दूसरे ने कहा, “यहाँ हमें बहुत सारी मछलियाँ मिलेंगी।” तीसरे ने अपनी बात रखी, “आज तो संध्या होने वाली है। हम कल सुबह ही यहाँ आकर जाल डालेंगे।” इस प्रकार, मछुआरों ने अगले दिन की योजना बनाई और वहाँ से चले गए। तीनों मछलियों ने मछुआरों की बातचीत सुन ली थी।

तीन मछलियों की कहानी

अन्ना मछली ने कहा, “साथियों! तुमने मछुआरों की बातें सुनीं। अब हमारा यहाँ रहना सुरक्षित नहीं है। हमें खतरे की सूचना मिल चुकी है। समय रहते अपनी जान बचाने के लिए कदम उठाना आवश्यक है। मैं तो अभी इसी ताल को छोड़कर नहर के रास्ते नदी में जा रही हूँ। उसके बाद मछुआरे सुबह आएँ या जाल डालें, मुझे इसकी चिंता नहीं। तब तक मैं बहुत दूर क्रीड़ा कर रही होऊंगी।”

प्रत्यु मछली ने उत्तर दिया, “तुम्हें जाना है तो जाओ, मैं नहीं आ रही। अभी खतरा कहाँ आया है कि इतना डरने की आवश्यकता है? संभव है कि संकट आए ही न। उन मछुआरों का यहाँ आने का कार्यक्रम रद्द हो सकता है, हो सकता है कि रात में चूहे उनके जाल काट दें, या फिर उनकी बस्ती में आग लग जाए। भूकंप आकर उनके गाँव को नष्ट कर सकता है, या रात में भारी वर्षा हो सकती है और बाढ़ में उनका गाँव बह जाए। इसलिए उनका आना निश्चित नहीं है। जब वे आएँगे, तब देखा जाएगा। हो सकता है कि मैं उनके जाल में फँसूँ ही नहीं।”

यद्दी ने अपनी भाग्यवादी विचारधारा व्यक्त करते हुए कहा, “भागने से कुछ नहीं होगा। यदि मछुआरों को आना है, तो वे आएँगे। यदि हमें जाल में फँसना है, तो हम फँसेंगे। जब भाग्य में मृत्यु ही लिखी है, तो क्या किया जा सकता है?”

इस प्रकार, अन्ना उसी क्षण वहाँ से चली गई। प्रत्यु और यद्दी ताल में ही रहीं।

तीन मछलियों की कहानी…..

सुबह होने पर, मछुआरे अपने जाल लेकर आए और ताल में जाल डालकर मछलियाँ पकड़ने लगे। जब प्रत्यु ने संकट को निकट आते देखा, तो वह अपनी जान बचाने के उपाय सोचने लगी। उसका मस्तिष्क तेज़ी से कार्य करने लगा। आस-पास छिपने के लिए कोई खोखली जगह भी नहीं थी। तभी उसे स्मरण आया कि उस ताल में कई दिनों से एक मृत ऊदबिलाव का शव तैर रहा है। वह उसके बचाव में सहायक हो सकता है।

शीघ्र ही उसे वह शव मिल गया। शव सड़ने लगा था। प्रत्यु उस शव के पेट में प्रवेश कर गई और सड़ते हुए शव की दुर्गंध को अपने ऊपर लपेटकर बाहर निकली। कुछ ही समय में प्रत्यु मछुआरे के जाल में फँस गई। मछुआरे ने अपना जाल खींचा और मछलियों को किनारे पर पलट दिया। अन्य मछलियाँ तड़पने लगीं, परन्तु प्रत्यु शांत भाव से एक मृत मछली की भाँति पड़ी रही। मछुआरे को सड़ी हुई गंध आई तो वह मछलियों को ध्यान से देखने लगा। उसने निश्चल पड़ी प्रत्यु को उठाया और सूंघा, “छी! यह तो कई दिनों की मरी हुई मछली है, सड़ चुकी है!” ऐसा बड़बड़ाते हुए और नाक-भौं सिकोड़कर उस मछुआरे ने प्रत्यु को वापस ताल में फेंक दिया।

तीन मछलियों की कहानी……

प्रत्यु ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करके संकट से सफलतापूर्वक बचाव कर लिया था। पानी में गिरते ही उसने डुबकी लगाई और सुरक्षित गहराई में पहुँचकर अपनी जान की रक्षा की।

यद्दी भी एक अन्य मछुआरे के जाल में फँस गई और उसे एक टोकरी में डाल दिया गया। भाग्य के भरोसे बैठी रहने वाली यद्दी ने उसी टोकरी में अन्य मछलियों की तरह तड़प-तड़पकर अपने प्राण त्याग दिए। तीन मछलियों की कहानी पूरी हुई ।

सीख: भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो कर्म में विश्वास रखते हैं और कर्म को ही सर्वोपरि मानते हैं। भाग्य के सहारे निष्क्रिय बैठे रहने वालों का विनाश अवश्यंभावी है।