नचिकेता की प्रेरक कहानी की शुरुवात एक छोटे से गाँव से होती है जिसमें नचिकेता नाम का एक नन्हा बालक रहता था। वह केवल दस साल का था, लेकिन उसकी आँखों में जिज्ञासा की चमक और मन में सवालों का तूफान था। नचिकेता के पिता, वाजश्रवास, एक विद्वान व्यक्ति थे, जो गाँव में यज्ञ और दान-दक्षिणा के लिए प्रसिद्ध थे। एक दिन, वाजश्रवास ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। गाँव के सभी लोग वहाँ जमा हुए। यज्ञ में दान देने का समय आया, और वाजश्रवास ने अपनी सारी पुरानी और बेकार चीजें दान में दे दीं—टूटी गाड़ियाँ, कमजोर गायें, और फटे-पुराने कपड़े। नचिकेता यह सब देखकर सोच में पड़ गया। उसने मन ही मन सोचा, “पिताजी कहते हैं कि दान देना पुण्य का काम है, लेकिन क्या बेकार चीजें दान देना सही है? यह तो सत्य से दूर है!” उसका छोटा सा दिल सवालों से भर गया। उसने हिम्मत जुटाई और अपने पिता से पूछा, “पिताजी, आपने तो सब बेकार चीजें दान दीं। क्या यह सच्चा दान है? और मुझे किसे दान देंगे?” वाजश्रवास को गुस्सा आ गया।

उन्होंने झट से कहा, “तुझे मैं यमराज को दान दे दूँगा!” यमराज, यानी मृत्यु के देवता! यह सुनकर गाँव वाले हैरान रह गए, लेकिन नचिकेता के चेहरे पर डर की एक भी रेखा नहीं थी। उसने सोचा, “अगर पिताजी ने ऐसा कहा, तो जरूर इसमें कोई सत्य छिपा है। मैं यमराज से मिलकर सत्य की खोज करूँगा!” यमराज के द्वार पर नचिकेतानचिकेता ने बिना किसी डर के यमराज के लोक की ओर प्रस्थान किया। रास्ता लंबा और कठिन था।

नचिकेता की प्रेरक कहानी
जंगल, नदियाँ, और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों को पार करते हुए वह यमराज के महल पहुँचा। लेकिन वहाँ पहुँचकर उसे पता चला कि यमराज तीन दिन के लिए कहीं गए हैं। नचिकेता ने फैसला किया कि वह यमराज का इंतजार करेगा। वह तीन दिन बिना नींद और कुछ खाए पीए यमलोक के दरवाजे पर यमराज का इंतजार करता रहा उसका हट देखकर स्वयं यमराज भी आश्चर्यचकित हुए । जब यमराज लौटे, तो उन्होंने नचिकेता की हिम्मत और धैर्य की प्रशंसा की।

उन्होंने कहा, “हे नन्हे बालक, तूने तीन दिन मेरे द्वार पर प्रतीक्षा की। मैं तुझसे प्रसन्न हूँ। मुझसे तीन वरदान माँग!” नचिकेता ने पहला वरदान माँगा, “मेरे पिता की मुझसे नाराजगी दूर हो जाए जब मैं घर लौटूं तो वे खुशी से मुझे स्वीकार करें करें।” यमराज ने आशीर्वाद देते हुए कहा, ” निश्चित ही ऐसा होगा।” दूसरा वरदान नचिकेता ने माँगा, “मुझे वह ज्ञान दो, जिससे मैं स्वर्ग के रहस्य और यज्ञ की शक्ति को समझ सकूँ।” यमराज ने उसे यह ज्ञान दिया और कहा, “यह ज्ञान तुझे जीवन में सही मार्ग दिखाएगा।” सबसे बड़ा सवाललेकिन तीसरे वरदान के लिए नचिकेता ने कुछ ऐसा पूछा, जिसने यमराज को भी सोच में डाल दिया। उसने कहा, “यमराज, मुझे बताइए, मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? क्या आत्मा अमर है, या वह भी नष्ट हो जाती है?” यमराज ने कहा, “नचिकेता, यह सवाल बहुत गहरा है। इसकी जगह कुछ और माँग ले—धन, वैभव, लंबी आयु, या स्वर्ग का सुख!” लेकिन नचिकेता अड़ा रहा। उसने कहा, “ये सब तो एक दिन खत्म हो जाएँगे। मुझे सत्य चाहिए, जो कभी नष्ट न हो।” नचिकेता की जिद और सत्य की खोज देखकर यमराज प्रभावित हुए। उन्होंने उसे आत्मा का रहस्य बताया।

उन्होंने कहा, “आत्मा न तो पैदा होती है, न मरती है। वह अनंत है, अमर है। शरीर तो केवल एक वस्त्र है, जो बदलता रहता है, लेकिन आत्मा सदा एक-सी रहती है। जो इस सत्य को जान लेता है, वह डर से मुक्त हो जाता है।” नचिकेता की वापसीयमराज से ज्ञान प्राप्त कर नचिकेता अपने गाँव लौटा। उसके पिता ने उसे गले लगाया और अपने गुस्से के लिए माफी माँगी। नचिकेता ने अपने गाँव वालों को यमराज से मिला ज्ञान साझा किया। उसने बताया कि सत्य की खोज ही जीवन का असली धन है। उसकी कहानी गाँव-गाँव में फैल गई, और लोग उसे “सत्य का साधक” कहने लगे। बच्चों के लिए प्रेरणानचिकेता की कहानी हमें सिखाती है कि सवाल पूछना और सत्य की खोज करना कभी गलत नहीं होता। चाहे रास्ता कितना भी मुश्किल हो, धैर्य और साहस के साथ हर चुनौती को पार किया जा सकता है। यह कहानी बच्चों को प्रेरित करती है कि वे अपने मन के सवालों को दबाएँ नहीं, बल्कि उन्हें खुलकर पूछें और जवाब की तलाश करें।