👑 जादुई कलम: आदित्य राज और रहस्यमय देवता(The Magical Pencil: Aditya Raj and the Enigmatic Deity)आदित्य राज नाम का एक युवक एक छोटे से गाँव में रहता था, लेकिन उसका जन्म वीरेंद्रपुर के समृद्ध राज्य में हुआ था।
उसके पिता प्रद्युमन, एक न्यायप्रिय और प्रजा-सेवक राजा थे, जिन्हें एक धोखेबाज सेनापति भद्रसेन ने धोखे से मार डाला था। प्रद्युमन की रानी को अपने शिशु राजकुमार को लेकर रातों-रात भागना पड़ा और उन्होंने उसे एक पास ही के गाँव में शरण लेकर पाला ओर बड़ा किया ।
आदित्य राज अपने पिता की तरह मददगार और साहसी था। शारीरिक रूप से बलिष्ठ और आकर्षक होने के साथ-साथ उसकी सादगी और दयालुता की चर्चा दूर-दूर तक थी। वह अपने गाँव में हर किसी की निःस्वार्थ मदद करता था – बीमारों की देखभाल करना हो या फसल काटने में सहायता करना – और इसी वजह से पूरा गाँव उसे अपने नायक के रूप में प्यार करता था।
उसे चित्र बनाने का गहरा शौक था; वह गीली मिट्टी और रेत पर नुकीले पत्थरों और छोटी लकड़ियों से चित्र बनाता था। वह हमेशा चित्रों के प्रति जुनूनी रहा, क्योंकि वह मानता था कि चित्र में भी जीवन होता है।
एक दिन आदित्य ने अपनी कलम से रहस्यमय सुंदर देवता का चित्र बना दिया जो उसके सपने में उसे बहुत बार दिखा करते थे… आश्चर्यजनक रूप से,सच में वह आकृति तेजस्वी देवता के रूप में प्रकट हो गई ।
देवता, आदित्य की प्रतिभा और शुद्ध हृदय से बहुत प्रसन्न हुए और उसे एक कलम भेंट करते हुए गंभीर स्वर में कहा, “तुम्हें इससे केवल दीन-दुखियों और गरीबों की सहायता करनी है । अगर तुम्हें कभी अन्याय के विरुद्ध मेरी मदद की ज़रूरत पड़े, तो इस कलम की सहायता से मुझे फिर बुलाना।”

यह कहकर देवता क्षण भर में अंतर्धान हो गए। आदित्य बहुत खुश हुआ और उसने कलम से एक सेब बनाया। “वाह, यह तो बहुत अद्भुत कलम है!” क्योंकि चित्र तत्काल असली सेब में बदल गया था ।
उसके बाद, उसने एक घोड़ा बनाया; वह भी क्षण भर में असली घोड़े में बदल गया। “यह क्या है ? यह सचमुच एक जादुई कलम है! बहुत-बहुत धन्यवाद, रहस्यमयी देवता!” वह बोला ।
आदित्य ने अपनी कलम से भोजन बनाया; वह भी गरमागरम असली भोजन में बदल गया। उसने अपनी कलम से अनाज, फल और कपड़े बनाए। ये सभी चीज़ें तत्काल असली चीज़ों में बदल गईं।
सच्चे नेतृत्व की भावना से प्रेरित, आदित्य ने जरूरतमंद लोगों की ज़रूरत की चीज़ों के चित्र बनाए और उन्हें सम्मानपूर्वक दे दिए।गाँव के लोग आदित्य के चमत्कारी कार्यों और गरीबों के लिए उसकी मदद से अत्यंत खुश हुए।
धोखेबाज सेनापति से राजा बने भद्रसेन ने आदित्यराज ओर उसकी कलम के बारे में सुना और लोभ से भरकर आदित्य को दरबार में बुलाया। राजा ने घमंड से आदेश दिया, “शाही बाग के लिए एक सोने का पेड़ बनाओ! आदित्य ने विनम्रता से उत्तर दिया, “महाराज, आप बहुत अमीर हैं। मेरा कर्तव्य केवल गरीबों के लिए चित्र बनाकर सहायता करना है।”
राजा भयंकर रूप से क्रोधित हुआ। उसने आदेश दिया कि बलपूर्वक उससे कलम छीन ली जाए। क्रोध से पागल राजा ने तुरंत सोने का पेड़ बनाना शुरू किया, लेकिन चित्र सच में सोने का पेड़ नहीं बन पाया ।
उसने अपने मंत्री और दरबार के हर कलाकार से सोने के पेड़ का चित्र बनाने को कहा; किसी का भी चित्र असली चीज़ों में नहीं बदला। राजा आगबबूला हो गया और चिल्लाया, “आदित्य, मेरी बात सुनो! तुम्हें एक सोने का पेड़ बनाना होगा। अगर तुमने मेरी शाही आज्ञा नहीं मानी, तो मैं तुम्हें आजीवन काल कोठरी की सज़ा सुना दूँगा!”

आदित्य राज को अंधेरी, नमी भरी काल कोठरी में डाल दिया । राजा अपनी हठधर्मी पर अड़ा रहा और कलम से बहुमूल्य वस्तुएं बनाने की असफल कोशिश करता रहा।
काल कोठरी में, आदित्य का हृदय उन लोगों के लिए भारी था जिनकी वह अब मदद नहीं कर सकता था। उसे देवता के शब्द याद आए कि जरूरत पड़े तो मुझे इस कलम के माध्यम से याद करना । उसे एक उपाय सुझा ।
उसने राजा के लिए सोने का पेड़ बनाने की हां कर दी । उसी समय उसे कोठरी से बाहर निकाला गया । अपने फटे कपड़ों निराशा के आँसू बहाते हुए, उसने कलम को पवित्र वस्तु की तरह पकड़ा और अपने शुद्ध, ईमानदार आत्मा के सम्पूर्ण बल के साथ, देवता के भयानक रूप का स्मरण करते हुए,देवता का ही चित्र बना दिया।
इस बार, देवता अत्यंत भयानक, विकराल रूप में प्रकट हुए, उनके हाथ में एक तेजस्वी दिव्यास्त्र था, जिसे देखकर राजा और उनके मंत्री आतंक से कांपने लगे।
देवता ने गड़गड़ाती आवाज में घोषणा की, “मैंने न्याय और करुणा के लिए इस ईमानदार बालक को चुना था; वह अपना काम ईमानदारी से कर रहा था। तुम राजाओं और धनी लोगों का लोभ और अहंकार कभी समाप्त क्यों नहीं होता ?

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उन्होंने घोषणा की,”अब सच सुनो, मैं राजा प्रद्युमन और इस युवक का कुल देवता हूं और यह आदित्यराज ही राज्य का असली वारिस (True Heir) है।”
“यदि किसी को मेरी बात से इनकार है तो युद्ध करके अपना राज्य वापिस ले लेवे” ।
दुष्ट सेनापति-राजा ने अपनी तलवार निकाली और सैनिकों को निहत्थे आदित्यराज को मारने को हुक्म दिया, सैनिक भी हथियार हाथ में लिए आगे बढ़े ।
देवता ने तुरंत ही अपना दिव्य अस्त्र आदित्यराज की ओर उछाल दिया । आदित्यराज ने तुरंत हथियार लपक कर सीधा राजा की ओर चला दिया । दुष्ट राजा को सम्हालने का मौका तक नहीं मिला और दिव्य शक्ति ने राजा का सिर धड़ से अलग कर दिया और फिर वहीं हवा में मंडराने लगा ।
दुष्ट राजा की दर्दनाक मौत देख कर सैनिक और महामंत्री भी डर गए और हार स्वीकार कर देवता के सामने झुक गए। दिव्य शक्ति ने अपना अस्त्र वापिस प्राप्त किया और नए युवा राजा को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए ।

सबने आदित्य राज को सिंहासन का असली मालिक स्वीकार किया और अपने नए राजा को मुकुट पहनाकर सम्मान पूर्वक राजगद्दी पर बैठाया । दयालु युवक से राजा बने आदित्यराज ने बहुत सालों तक राज किया ओर जनता की सेवा की ।

