बर्बरीक और श्री कृष्णबर्बरीक और श्री कृष्ण

महाभारत युद्ध की गाथा भारतीय संस्कृति में एक अमर प्रतीक है, जिसमें धर्म, कर्म और बलिदान की कहानियाँ गूँजती हैं। बर्बरीक और श्री कृष्ण की यह एक अत्यंत रोमांचक कहानी है । बर्बरीक, भीम के पुत्र और घटोत्कच का पुत्र थे, एक महान योद्धा थे, जिनके बलिदान ने महाभारत युद्ध को एक नया आयाम दिया ।

बर्बरीक महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र था । बर्बरीक ने संकल्प लिया कि वह महाभारत युद्ध में उस पक्ष का साथ देगा जो कमजोर होगा, बर्बरीक निर्बल की सहायता करने की भावना रखने वाले थे । जब महाभारत युद्ध शुरू होने वाला था, बर्बरीक अपनी माता आज्ञा लेकर कुरुक्षेत्र की ओर निकल पड़े।

उनकी माता ने उन्हें आशीर्वाद दिया, किंतु मन में चिंता थी कि उनका पुत्र युद्ध के भयावह परिणामों का सामना करेगा।बर्बरीक का इरादा स्पष्ट था—वह कमजोर पक्ष की रक्षा करेंगे, चाहे वह पांडव हों या कौरव हो ।

बर्बरीक और श्री कृष्ण संवाद

कुरुक्षेत्र की ओर बढ़ते हुए बर्बरीक का सामना श्री कृष्ण से हुआ। श्री कृष्ण, जो स्वयं युद्ध के सूत्रधार थे, बर्बरीक की शक्ति और संकल्प को भली-भाँति परिचित थे । उन्होंने एक ब्राह्मण के रूप में युद्ध मार्ग की ओर जाते वीर युवा को रोककर उसका परिचय पूछा, “हे वीर, तुम कौन हो ?

बर्बरीक ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “हे ब्राह्मण श्रेष्ठ,मैं महाबली भीम का पोता और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हूँ। इसके बाद उन्होंने पूछा कि तुम युद्ध में किस ओर हो ? बर्बरीक ने बताया कि युद्ध में दोनों ही पक्ष मेरे कुल के हैं अतः युद्ध में जो कमजोर पक्ष है मैं उसकी सहायता करूंगा ।

श्रीकृष्ण सोच में पड़ गए क्योंकि वे जानते थे कि बर्बरीक की यह प्रतिज्ञा युद्ध को अनावश्यक रूप से जटिल कर सकती है, क्योंकि उनकी शक्ति दोनों पक्षों को नष्ट करने में सक्षम थी। कृष्ण बोले मुझे युद्ध में शामिल होने से पहले अपने सामर्थ्य का परिचय दो । वीर बर्बरीक हंस कर बोला कि मैं संपूर्ण युद्ध तीन तीर में ही खत्म करने में सक्षम हूं ।

बर्बरीक और श्री कृष्ण

ब्राह्मण रूप में श्री कृष्ण एक पीपल के वृक्ष के पत्ते को अपने पैर के नीचे दबा कर बोले “क्या तुम अपने बाण से इस पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को भेद सकते हो?” बर्बरीक ने सहमति दी और बाण छोड़ा, बाण पेड़ के हर पत्ते को भेदने के बाद श्री कृष्ण के पैर पर आकर रुक गया और वहीं मंडराने लगा । “ब्राह्मण श्रेष्ठ अपना पैर हटाइए” बर्बरीक ने विनम्रता से कहा । जैसे ही श्री कृष्ण ने अपना पैर हटाया बाण उस अंतिम पत्ते में भी घुस गया ।

बर्बरीक की शीश दान मांगना

श्री कृष्ण अपने मूल स्वरूप में आ गए और बर्बरीक से कहा, “हे वीर, तुम्हारी शक्ति अद्भुत है ।” बर्बरीक साक्षात् कृष्ण को अपने सामने पाकर बहुत खुश हुआ और नतमस्तक हो गया । श्री कृष्ण ने घोषणा की कि इस युद्ध का उद्देश्य धर्म की स्थापना है। युद्ध में धर्म की जीत हो इसके लिए किसी योद्धा की बलि देनी होगी,हे वीर, यदि तुम सच्चे धर्म के पक्षधर हो, तो मुझे अपना शीश दान करो ।

बर्बरीक और श्री कृष्ण
बर्बरीक

बर्बरीक ने बिना किसी संकोच के अपनी सहमति दे दी। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, यदि मेरा शीश युद्ध में धर्म की स्थापना के लिए आवश्यक है, तो मैं इसे सहर्ष दान करता हूँ। किंतु मेरी एक शर्त है—मैं युद्ध का अंत देखना चाहता हूँ।”

श्री कृष्ण ने उनकी शर्त स्वीकार की और बर्बरीक ने अपनी तलवार से स्वयं अपना शीश काटकर श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया । शर्त के अनुसार ही शीश में प्राण दे कर उसे कुरुक्षेत्र में सबसे ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया ताकि वह युद्ध को अन्त तक देख सके ।

बर्बरीक की माता का विलाप

जब बर्बरीक की माता मौरवी को जब युद्ध से पहले ही पुत्र के बलिदान का समाचार मिला तो वह भी पहुंची और उन्होंने श्री कृष्ण से प्रश्न किया, “हे माधव, मेरे पुत्र ने क्या अपराध किया था जो उसे यह बलिदान देना पड़ा?” श्री कृष्ण ने मौरवी को समझाया, “माता, बर्बरीक का बलिदान व्यर्थ नहीं गया।

उनकी शक्ति युद्ध को असंतुलित कर सकती थी और उनके बलिदान ने धर्म की विजय का मार्ग प्रशस्त किया। वे अमर हो गए है ।

बर्बरीक और श्री कृष्ण

इसके बाद श्री कृष्ण ने मौरवी को वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हारा पुत्र मेरे नाम श्याम से पूजा जायेगा ।

खाटू श्याम मंदिर की स्थापना

पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजस्थान के खाटू गांव में एक स्थान ऐसा विशेष हो गया जहां कोई भी गाय खड़ी होती तो अपने आप ही गाय के थनों से दूध बहने लगता। जिसकी सूचना वहां के राजा रूप सिंह को मिली । जब उस स्थान की खुदाई की गई तो वहां बर्बरीक का सिर मिला । वहीं राजा को भी को सपने में मंदिर बनाने का आदेश मिला, और उन्होंने उस शीश को मंदिर में स्थापित किया।

उस समय से बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है, जो राजस्थान के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। उन्हें श्रद्धा से “हारे का सहारा” भी कहा जाता है, और उनके भक्तों का मानना है कि आप कितना भी जीवन संघर्ष में हार गए हों यदि सच्चे मन से खाटू श्याम से प्रार्थना करें तो वे सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।