बुद्ध पूर्णिमा का दिन बहुत विशेष दिन है । यह दिन ऐसे महान व्यक्ति की याद में मनाया जाता है जिन्होंने दुनिया को शांति और अहिंसा का ज्ञान दिया। जिन्होंने बताया कि ईश्वर को पाने के लिए बाहरी साधनों और आडंबरों की बजाय स्वयं के अंदर की यात्रा करनी होगी। यह दिन गौतम बुद्ध के जन्मदिन, परमज्ञान प्राप्ति तथा महापरिनिर्वाण के लिए याद किया जाता है। विशेष बात है कि यह तीनों घटनाएं अलग-अलग कालखंड में एक ही तिथि, हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह की पूर्णिमा को घटित हुईं।एक राजा के बेटे से महा आत्मा तक का सफर लगभग 2500 साल पहले राजा शुद्धोधन के यहां नेपाल के लुंबिनी में एक बच्चे का जन्म हुआ।

उसके जन्म पर एक विशेष घटना हुई। हिमालय से एक ऋषि असित राजकुमार के दर्शन के लिए आए। राजा शुद्धोधन के लिए यह बहुत आश्चर्य की बात थी। दर्शन के दौरान ऋषि की आंखों से आंसू गिरने लगे। जब राजा ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि मेरे पास अब पृथ्वी पर ज्यादा समय नहीं बचा है। यह बालक बड़ा होकर या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या बहुत बड़ा आध्यात्मिक नेता। यह आंसू इसलिए हैं क्योंकि तब तक मैं जीवित नहीं रहूंगा।और ऐसा हुआ भी। राजकुमार अपने जीवन के प्रारंभिक दिन बड़े ऐशो-आराम से बिता रहे थे। फिर एक दिन जब वह अपने राज्य का भ्रमण कर रहे थे तब उनका जीवन में सुख-दुख, जवानी, बुढ़ापा, जीवन और मृत्यु आदि से साक्षात्कार हुआ। जिसे देखकर वह बड़े दुखी हुए और जीवन में दुख का कारण व सत्य की खोज में अपने जीवन को लगाने का संकल्प कर लिया।उन्होंने कई वर्षों तक कठिन तपस्या की, बहुत से गुरुओं से ज्ञान प्राप्त किया, लेकिन जिस शांति और सत्य की खोज में लगे थे, वह उन्हें प्राप्त नहीं हुआ। अंत में बोधगया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। परम ज्ञान की प्राप्ति के इस दिन से वे बुद्ध कहलाए, जिसका मतलब होता है जागृत।

भगवान बुद्ध की कहानियों में से एक कहानी किसागोतमी की कहानी है, जो कि बौद्ध ग्रंथों में मिलती है। किसागोतमी एक युवा महिला थी जिसने हाल ही में एक बच्चे को जन्म दिया था। वह अपने बच्चे से बहुत प्यार करती थी, दुर्भाग्य से बीमारी से वह बच्चा चल बसा। वह अपने बच्चे की मृत्यु के गम में पागल सी हो गई और अपने बच्चे को जिंदा करने के उपाय ढूंढने के लिए गांव-गांव घूमने लगी।लोग उसे पागल कहने लगे और उसका उपहास करने लगे। फिर किसी ने मजाक में उसे श्रावस्ती में उस समय वास कर रहे भगवान बुद्ध के बारे में बताया। किसागोतमी एक पल का भी इंतजार न करते हुए भगवान बुद्ध के चरणों में जा गिरी।उसने भगवान बुद्ध से हाथ जोड़कर अपने बच्चे को पुनर्जीवित करने की विनती की।

भगवान बुद्ध ने उसकी बात शांति और ध्यानपूर्वक सुनने के बाद उससे कहा, “मैं तुम्हारे बच्चे को जीवित कर सकता हूं, लेकिन इसके लिए तुम्हें एक काम करना होगा।” मां अपने बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। बुद्ध ने कहा, “तुम्हें एक मुट्ठी सरसों लेकर आनी होगी, लेकिन उस घर से जहां आज तक किसी की मृत्यु न हुई हो।”गौतमी तुरंत गांव से सरसों के दाने लाने निकल पड़ी। वह जिस घर भी जाती, लोग उसे सरसों देने के लिए तैयार हो जाते। जब वह पूछती, “क्या इस घर में कभी किसी की मृत्यु हुई है?” तो लोग अपने किसी न किसी रिश्तेदार की मृत्यु का हवाला देते। किसागोतमी घर-घर जाती रही, लेकिन उसे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसके किसी न किसी परिचित की मृत्यु न हुई हो। धीरे-धीरे उसे यह पता चल गया कि मृत्यु तो जीवन का एक अटल सत्य है और यह सबके साथ होती है।वह वापस बुद्ध के पास लौटी और बोली, “भगवान, मुझे तो ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जिसका कोई परिचित व्यक्ति न मरा हो।” बुद्ध ने उसे धैर्य से बताया, “यही जीवन का सत्य है किसागोतमी। जो जन्मता है, उसकी मृत्यु निश्चित है, मृत्यु के सच को स्वीकार करना सीखो।” बुद्ध के वचनों से महिला को शांति मिली। उसने अपने पुत्र की मृत्यु को स्वीकार किया और बुद्ध से प्रभावित होकर संन्यासिनी बन आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया।

बुद्ध पूर्णिमा
के अवसर पर कहानी की सीख :यह कहानी बुद्ध पूर्णिमा के महत्व और भगवान बुद्ध के जीवन की एक प्रेरक घटना पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और यह गौतम बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं (जन्म, ज्ञान प्राप्ति, महापरिनिर्वाण) से कैसे जुड़ी है। लेख में राजकुमार सिद्धार्थ के बुद्ध बनने के सफर और किसागोतमी की प्रसिद्ध कहानी का वर्णन किया गया है, जो मृत्यु के अटल सत्य को स्वीकार करने का संदेश देती है।