महाभारत कथा में पांडवों को कौरवों से जुए में हार का सामना करना पड़ा, तो शर्त के अनुसार उन्हें बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भोगने के लिए जाना पड़ा।
अज्ञातवास के दौरान वे एक गांव से दूसरे गांव भटकते हुए एक गांव में पहुंचे। वहां उन्होंने एक वृद्ध महिला के घर आश्रय लिया। उस महिला ने पांडवों का बड़ा आदर-सत्कार किया और उनकी अतिथि सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पांडवों की माता कुंती उस महिला की सेवा से बहुत प्रसन्न थीं। कुंती एक बुद्धिमान और संवेदनशील महिला थीं। उन्होंने ध्यान दिया कि गृहस्वामिनी का चेहरा दिन-प्रतिदिन मुरझाता जा रहा है। उन्हें लगा कि उसके मन में कोई गहरा दुःख छिपा हुआ है।
कुंती ने अपने पुत्रों से इस बारे में चर्चा की और कहा, “इस महिला के चेहरे पर उदासी छाई हुई है। हो न हो, कोई गंभीर समस्या उसे सता रही है। हमें उसकी मदद करनी चाहिए।
“पांडवों ने माता कुंती से महिला का दुःख जानने का आग्रह किया। कुंती ने वृद्ध महिला से बात करने का प्रयास किया। पहले तो महिला ने कुछ नहीं बताया, लेकिन कुंती के लगातार पूछने पर वह भावुक हो गई और रो पड़ी।
उसने बताया कि कुछ वर्ष पहले हिडिंब नामक एक राक्षस ने गांव पर आक्रमण किया था और कई लोगों को मार डाला था। राक्षस के आतंक से तंग आकर गांव के मुखिया ने उससे एक समझौता किया था।
इस समझौते के अनुसार, हर महीने की एक निश्चित तिथि पर गांव से एक आदमी और दो बैलों सहित एक गाड़ी, जिसमें फल और पकवान होते थे, राक्षस के पास जंगल में भेजी जाती थी। बदले में राक्षस गांव पर हमला नहीं करता था।
वृद्ध महिला ने बताया कि इस बार की पूर्णिमा को उसके घर का नंबर आया है। उसके पति पहले ही बीमारी के कारण चल बसे थे, और अब उसका एकमात्र पुत्र ही उसका सहारा था। उसने कहा, “मेरा पुत्र ही मेरी जिंदगी का आधार है। अगर वह भी चला गया, तो मैं अकेली जीकर क्या करूंगी?” यह कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगी।
माता कुंती एक राजपरिवार से थीं और जीवन-मरण के प्रश्नों से वह भयभीत नहीं होती थीं। उन्होंने वृद्ध महिला को सांत्वना देते हुए कहा, “तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हारी इस समस्या का हल निकाल सकती हूं। यह कोई बड़ी बात नहीं है।
“वृद्ध महिला ने आश्चर्य से माता कुंती की ओर देखा। उसे लगा था कि कुंती उसके दुःख में शामिल होंगी, लेकिन उनका निडर और हंसता हुआ चेहरा देखकर वह हैरान रह गई। माता कुंती ने मुस्कुराते हुए कहा, “देखो बहन, मेरे पास भी पति नहीं है, लेकिन मेरे पांच पुत्र हैं। जब तुम्हारे घर से एक आदमी भेजना है, तो तुम्हारा पुत्र नहीं, बल्कि मेरा एक पुत्र जाएगा।
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“माता कुंती की बात सुनकर वृद्ध महिला का दिल भर आया, लेकिन उसने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया। उसने कहा, “अतिथि भगवान का रूप होता है। मैं अपने पुत्र के स्थान पर अपने अतिथि के पुत्र की बलि कैसे ले सकती हूं? यह मेरे लिए असंभव है।
“दोनों के बीच की इस बहस को सुनकर पांडव भी वहां आ गए। जब उन्हें पूरी बात पता चली, तो उन्होंने माता कुंती के प्रस्ताव का समर्थन किया। पांचों भाइयों ने एक-एक करके अपने जाने की बात कही। लेकिन वृद्ध महिला अभी भी अपनी बात पर अड़ी हुई थी।तब माता कुंती ने दृढ़ता से कहा, “मैं कुछ नहीं सुनूंगी। इस बार हिडिंब से जंगल में मिलने मेरा पुत्र भीम ही जाएगा।
“सभी भाइयों ने माता कुंती के आदेश को मानते हुए भीम के नाम पर सहमति व्यक्त की। भीम ने भी बिना किसी हिचकिचाहट के इस जिम्मेदारी को स्वीकार कर लिया।वृद्ध महिला की आँखों में आँसू थे, लेकिन अब उसके चेहरे पर एक नई आशा की किरण दिखाई दे रही थी।
जब भी गाँव के किसी युवक के जाने की बात होती, तो बुढ़िया की तरह उसका परिवार और युवक भी मृत्यु के भय से व्याकुल हो जाते थे। लेकिन इस बार परिवार के साथ-साथ युवक भीम भी उत्साहित नज़र आ रहा था।भीम दिखने में बहुत बलिष्ठ था। उसके विचार पवित्र थे और वह माँ का आज्ञाकारी पुत्र था, लेकिन शरीर से वह किसी राक्षस से कम नहीं लगता था।
गाँव और मुखिया ने पहले तो इस बात का विरोध किया, लेकिन माता कुंती के समझाने और भीम की ज़िद के आगे उनकी एक न चली।भीम ने कहा, “अब आप किसी गाँव के युवक को भेज भी दें, मैं तो माता के आदेश का पालन करूँगा और हिडिंब से मिलने जाऊँगा।” कभी वह मुखिया से कहता, “मुखिया जी, हिडिंब के लिए भेजी जा रही भोजन सामग्री में नमक सही रखना, रास्ते में भूख लगी तो मैं भी खा लूँगा।
“अंततः मुखिया और गाँव वाले अतिथि परिवार के हौसले के आगे झुक गए और भीम को भेजने पर राजी हो गए। तय दिन पर भीम को दो हष्ट-पुष्ट बैलों, एक बड़े घड़े में खिचड़ी और ढेर सारे फलों के साथ जंगल की ओर रवाना किया गया।
हर बार गाँव वाले अपने युवक को दुःख भरी आँखों से विदा करते थे, लेकिन आज पांडव परिवार का उत्साह देखकर वे आश्चर्यचकित थे।भीम की विदाई ऐसी लग रही थी, मानो वह किसी समारोह में जा रहा हो।
भीम की दिलचस्पी खाने की मात्रा में थी, और हिडिंब का डर उसके चेहरे पर ज़रा भी नहीं था। गाँव की सीमा, जहाँ से जंगल शुरू होता था, उसके बाद का रास्ता भीम को खुद ही तय करना था। सभी ने भीम को हिडिंब की गुफा की ओर विदा किया और गाँव लौट गए।
भीम भोजन के साथ खुद को अकेला पाकर बहुत खुश था। जैसे ही गाँव वाले उसकी नज़र से ओझल हुए, भीम ने चलती गाड़ी में ही भोजन चखना शुरू कर दिया। बैल भीम के भार से धीरे-धीरे गुफा की ओर बढ़ रहे थे। भीम तेज़ी से लज़ीज़ भोजन पर टूट पड़ा। उधर गुफा में बैठा राक्षस भोजन समय पर न पहुँचने से गुस्सा हो रहा था।
महाभारत कथा में हिडिंब राक्षस का वध
हिडिंब ने गाँव वालों को फिर से सबक सिखाने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। गुस्से से भरा हुआ वह गुफा से बाहर निकला और गाँव की ओर चल पड़ा। उसी समय सामने से भीम बैलगाड़ी लेकर आता दिखाई दिया।
हिडिंब ने उसे देखते ही जोर से गरजकर कहा, “मूर्ख मानव! इतना समय लगा दिया आने में! भूख के मारे मेरे प्राण सूख रहे हैं!”उसकी गर्जना से बैल डरकर ठिठक गए।
भीम ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे राक्षस राज, दूर से इतना चिल्लाने की क्या ज़रूरत है? मैं आ ही रहा हूँ।”जैसे ही भीम पास आया, हिडिंब ने देखा कि बैलगाड़ी फलों के छिलकों से भरी हुई है और खिचड़ी का मटका भी खाली पड़ा है। यह देखकर हिडिंब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
वह चीख़ा, “ये खाना कौन खा गया?”भीम ने मज़ाकिया अंदाज़ में जवाब दिया, “राक्षस राज, वो तो मैं खा गया। वैसे भी, आप मुझे खाकर खाना ही खाते। अब आपको अतिरिक्त मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है। मुझे खाकर एक बार में ही सब कुछ अपने पेट में डाल लीजिए।
“हिडिंब से अब और नहीं सहा गया। वह गुस्से से झल्लाते हुए बोला, “इधर आ! सबसे पहले तो मैं तुझे अपने पेट में डालता हूँ, फिर इसी वक्त गाँव जाकर मुखिया और गाँव वालों को सबक सिखाता हूँ!”ऐसा कहकर वह भीम पर झपटा।
उसे पता नहीं था कि वह महारथी भीम से लड़ने जा रहा है, जो युद्ध कला में निपुण है। भीम ने पास आते ही हिडिंब को दोनों हाथों से पकड़कर जमीन से हवा में उछाल दिया। दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। उनके वजन और प्रहारों से जमीन काँपने लगी। हिडिंब ने भीम पर जबरदस्त वार किए, लेकिन भीम ने हर हमले को चतुराई से बचाते हुए जवाबी हमला किया।
दोनों लहूलुहान हो गए, लेकिन भीम ने हार नहीं मानी। अंत में, भीम ने हिडिंब को उठाकर जमीन पर इतनी जोर से पटका कि उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
अगले दिन सुबह, गाँव वाले अनिष्ट की आशंका से परेशान थे। उगते सूरज के साथ पूर्व दिशा से भीम अपने कंधे पर विशाल राक्षस के शरीर को लादे हुए गाँव की ओर आ रहा था। गाँव वालों ने जब भीम को देखा, तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। सभी ने माता कुंती और उनके पाँच पुत्रों को धन्यवाद दिया।
अब हर महीने किसी भी परिवार को अपना सदस्य मारने के लिए भेजने की ज़रूरत नहीं रही। गाँव वालों ने भीम को गले लगाया और उसकी वीरता की प्रशंसा की।
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