Shri ram ko 14 वर्ष का vanvas, श्री राम को 14-वर्ष का वनवास की कथा बहुत रोचक है । कौशल प्रदेश के राजा दशरथ की तीन रानियां थी । राजा दशरथ बहुत पराक्रमी थे और विश्व में उनका कुल रघुकुल नाम से विख्यात था । दशरथ एक बात से बहुत परेशान रहते थे कि उन्हें कोई पुत्र नहीं था,हालांकि उनकी तीन पत्नियां कौशल्या,कैकेयी और सुमित्रा थीं ।
ऋषि मुनियों से परामर्श के बाद दशरथ ने अपनी पत्नियों के साथ पुत्र प्राप्ति की कामना से पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया । ऋषि श्रृंग द्वारा संतानहीन दशरथ के लिए पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ का जिम्मा लिया गया । यज्ञ से दिव्य खीर से भरा एक सुनहरा पात्र लेकर एक दिव्य प्राणी ज्वालाओं से निकला।
दशरथ ने इस दिव्य खीर को कौशल्या , सुमित्रा और कैकेयी को दिया । परिणामस्वरूप, कौशल्या ने राम को , सुमित्रा ने जुड़वां लक्ष्मण और शत्रुघ्न को, और कैकेयी ने भरत को जन्म दिया ।
इससे पूर्व देवताओं और असुरों के बीच युद्ध में, दशरथ कैकेयी के साथ, राक्षसों के खिलाफ लड़ने में मदद करने के लिए देवलोक गए। शंबर और उसकी असुर सेना द्वारा किए गए जादू के कारण देव कमजोर स्थिति में थे।
दशरथ रथ पर सवार होकर, एक ही समय में सभी दिशाओं में असुरों का सामना कर रहे थे। इस लड़ाई में, उनके रथ को तेजी से हर दिशा में मोड़ना पड़ा। युद्ध के दौरान,रथ का एक पहिया निकल गया, और पहिया अलग होने ही वाला था कि कैकेयी ने अपनी अंगुली पहिए में डाल दी और रथ को स्थिर रखा।
युद्ध में जीत होने पर राजा दशरथ कैकेयी की वीरता से प्रसन्न हुए और उन्होंने कैकेयी को दो वरदान देने की पेशकश की। रानी ने कहा कि उसे अभी कुछ नहीं चाहिए । वह भविष्य में उन दो वरदानों को मांगेगी ।
उसके बाद यज्ञ से पुत्र प्राप्त हुवे और समय बिताने पर वे राजकुमार युवा हुए । एक दिन राजा दशरथ ने राज कार्य से मुक्त होने तथा राजकुमारों में सबसे बड़े और योग्य श्री राम को अपना उत्तराधिकारी चुनने के लिए अपने मंत्री परिषद और ऋषि मुनियों से परामर्श मांगा ,जिसपर सभा ने स्वीकृति भी दे दी ।
इस प्रकार राजकुमार राम के अभिषेक का समय तय हुआ और पूरे राज्य में भी इस बात का समाचार किया गया । राजपरिवार के सभी सदस्यों के साथ ही साथ कैकेयी भी प्रसन्न थीं लेकिन कैकेयी के पुत्र भरत की धाय मंथरा को यह बात अच्छी नहीं लगी ।
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उसे डर था कि यदि राम सिंहासन पर बैठते हैं तो कैकेयी का मुख्य रानी का दर्जा खो जाएगा क्योंकि राजा बनने वाले राम की मां कौशल्या रानी माँ बन जाएगी । वह अपने हाथों से देखभाल किए राजकुमार भरत को ही राजा बने देखना चाहती थी ।उसने कैकेयी के खुश होने पर भला बुरा कहा और भड़काने का सफल प्रयास किया ।
कैकेयी को भी मंथरा की बात में सच्चाई नजर आई । कैकेयी ने कहा ” अब तो राम के अभिषेक की घोषणा भी हो गई है, अब किया ही क्या जा सकता है ? इस पर मंथरा ने कैकेयी को उन दो वरदानों के बारे में याद दिलाया जो उसने युद्ध की जीत पर प्राप्त किए थे ।
कैकेयी ने मंथरा कि सलाह पर काम करने का निश्चय किया और नाराज होकर कोप भवन चली गई । उस समय जब कोई रानी नाराज होती थी तो कोप भवन में जा कर रहने लग जाती थी ।राजा दशरथ को जब यह पता चला तो वे राज्याभिषेक के शुभ अवसर पर रानी कैकेयी को मनाने गए ।
राजा दशरथ ने कैकेयी को मनाने के लिए खुशी खुशी कुछ भी देने का आश्वाशन दिया । रानी ने पहले तो राजा दशरथ को अपने बकाया दो वरदानों के बारे में याद दिलाया । राजा ने पूर्ण मन से वरदान बकाया होना स्वीकार किया और वरदान मांगने को कहा ।
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रानी कैकेयी ने पहला वरदान अपने पुत्र राजकुमार भरत को राजा बनाने और दूसरा वरदान राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा । यह सुनकर दशरथ मूर्छित हो गए और कैकेयी के महल में दयनीय अवस्था में रात बिताई।
अगले दिन भी राजा दशरथ ने रानी कैकेयी से बड़ी मिन्नतें की। हालांकि, रानी कैकेयी नहीं मानीं। तब राजा दशरथ ने अपने कुल की मर्यादा (रघु कुल रीत सदा चली आई,प्राण जाए पर वचन न जाई ) को निभाते हुए भगवान श्रीराम को दुःख भरे मन से वनवास का आदेश दे दिया ।
भगवान श्रीराम ने तत्क्षण पिता के आदेश को स्वीकार्य कर वनवास को चुन लिया। भगवान श्रीराम के वनवास जाने की बात आग की तरह पूरे अयोध्या में फैल गई ……जो उनके भाई भरत तक भी जा पहुंची जो उस समय अपने ननिहाल में थे ।
इस प्रकार रामायण की यह लघु कथा पूर्ण होती है ।