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हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा लिखा गया है, जो भगवान श्रीराम के परम भक्त थे । एक बार मथुरा की यात्रा पर निकले। रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला। जब लोगों को पता चला कि तुलसीदासजी आगरा में आए हैं । उनके दर्शनों के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। लोग उनके आशीर्वाद लेने और उनकी प्रेरणादायक वाणी सुनने के लिए उत्सुक थे। यह खबर जल्दी ही पूरे शहर में फैल गई।

जब यह बात मुगल बादशाह अकबर तक भी पहुंची । अकबर ने मंत्री वीरबल से पूछा, “यह तुलसीदासजी कौन हैं?” वीरबल ने बताया, “हुज़ूर, यह वही महान संत हैं जिन्होंने श्रीरामचरितमानस की रचना की है। ये भगवान श्रीराम के परम भक्त हैं और इनकी वाणी में अद्भुत शक्ति है। मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ।” अकबर ने सोचा कि वह भी तुलसीदासजी से मिलकर उनके दर्शन करेंगे।

अकबर ने तुलसीदासजी को दरबार में बुलवाया । तुलसीदासजी ने अकबर से मिलने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे केवल भगवान श्रीराम की भक्ति में लीन हैं और राजदरबार में जाने का उनका कोई इरादा नहीं है। यह बात सुनकर अकबर को बहुत बुरा लगा। उन्हें लगा कि तुलसीदासजी उनका अपमान कर रहे हैं। गुस्से में आकर अकबर ने तुलसीदासजी को जंजीरों से जकड़कर लाल किले में लाने का आदेश दिया।

हनुमान बाहुक
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जब तुलसीदासजी को जंजीरों में बांधकर लाल किले में लाया गया, तो अकबर ने उनसे कहा, “कहा जाता है कि आप एक करिश्माई व्यक्ति हैं। कोई चमत्कार दिखाइए।” तुलसीदासजी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “मैं तो केवल भगवान श्रीराम का भक्त हूँ। मैं कोई जादूगर नहीं हूँ जो आपको कोई चमत्कार दिखा सकूँ।” यह सुनकर अकबर और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने तुलसीदासजी को काल कोठरी में डालने का आदेश दे दिया।

काल कोठरी में तुलसीदासजी ने भगवान श्रीराम और हनुमानजी का स्मरण किया। बीमारी के कारण असाध्य पीड़ा के कारण वे प्रार्थना कर रहे थे कि उन्हें इस संकट से मुक्ति मिले। उसी समय, उनके हाथों से स्वतः ही कुछ लिखा जाने लगा। यह हनुमानजी की प्रेरणा से लिखी गई 40 चौपाइयाँ थीं, जो बाद में “हनुमान बाहुक” के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

दूसरे दिन, आगरा के लाल किले पर एक अद्भुत घटना घटी। लाखों बंदरों ने एक साथ किले पर हमला बोल दिया। वे किले की दीवारों पर चढ़ गए और वहाँ तैनात सैनिकों को परेशान करने लगे। बंदरों ने किले के अंदर भी घुसकर तोड़फोड़ शुरू कर दी। पूरा किला तहस-नहस हो गया और वहाँ अफरा-तफरी मच गई। सैनिक और नौकर-चाकर बंदरों के आगे बेबस हो गए। यह दृश्य देखकर अकबर घबरा गए।

अकबर ने तुरंत वीरबल को बुलाया और पूछा, “यह क्या हो रहा है? इतने सारे बंदर कहाँ से आ गए?” वीरबल ने कहा, “हुज़ूर, आप तुलसीदासजी से चमत्कार देखना चाहते थे, तो देखिए। यह उनकी भक्ति की शक्ति है।” अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने तुरंत तुलसीदासजी को काल कोठरी से निकालने का आदेश दिया। तुलसीदासजी की जंजीरें खोल दी गईं और उन्हें सम्मानपूर्वक दरबार में लाया गया। अकबर को भी अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ ।

तुलसीदासजी ने सब प्रभु लीला बताते हुए कहा, “मैं बीमारी के कारण दर्द में था और उससे छुटकारा पाने के लिए मैने श्रीराम और हनुमानजी का स्मरण किया। मेरे हाथों से स्वतः ही यह 40 चौपाइयाँ लिखी गईं, जो हनुमानजी की कृपा से प्रकट हुई हैं।” तब से व्याधि के दर्द और बीमारी से छुटकारा पाने हेतु हनुमान बाहुक को पढ़ने का विधान हुआ ।

इस घटना के बाद, तुलसीदासजी की ख्याति और बढ़ गई। लोग उन्हें भगवान श्रीराम का सच्चा भक्त मानने लगे। उनकी रचना “हनुमान बाहुक” आज भी भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है और इसे हनुमानजी की कृपा का प्रतीक माना जाता है। यह कहानी हमें यह सीख देती है कि भक्ति और सच्चाई की शक्ति किसी भी संकट को दूर कर सकती है।